नई दिल्ली/रकीब अहमद: सरिता बिहार स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल को सुप्रीम कोर्ट ने सख्त चेतावनी देते हुए कहा है कि यदि वह 1994 के लीज समझौते के तहत गरीबों को मुफ्त इलाज उपलब्ध कराने की शर्तों का पालन नहीं करता, तो उसकी चिकित्सा सुविधा अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को सौंप दी जाएगी।
अस्पताल के रिकॉर्ड की जांच का आदेश
मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अपोलो अस्पताल के पिछले पांच वर्षों के रिकॉर्ड की जांच करने का निर्देश दिया। अदालत यह सुनिश्चित करना चाहती है कि अस्पताल ने गरीब मरीजों के लिए मुफ्त चिकित्सा सेवाएं प्रदान करने की अपनी जिम्मेदारी को सही तरीके से निभाया है या नहीं।
लीज समझौते की शर्तें
1994 में किए गए लीज समझौते के अनुसार, अपोलो अस्पताल को दिल्ली के मथुरा रोड पर 15 एकड़ जमीन महज 1 रुपये प्रति माह की प्रतीकात्मक लीज राशि पर दी गई थी। इसके बदले अस्पताल को अपनी कुल क्षमता के 30 प्रतिशत इन-पेशेंट (अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीज) और 40 प्रतिशत आउट-पेशेंट (बाह्य रोगी) को मुफ्त चिकित्सा सेवा उपलब्ध करानी थी।
अस्पताल पर शर्तों के उल्लंघन का आरोप
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान यह मामला उठा कि अपोलो अस्पताल ने गरीबों के लिए मुफ्त चिकित्सा सेवा की शर्तों का पूर्ण रूप से पालन नहीं किया है। अदालत ने इस विषय पर गंभीर चिंता व्यक्त की और कहा कि यदि अस्पताल अपनी जिम्मेदारियों का पालन नहीं करता, तो सरकार को उसकी चिकित्सा सुविधाओं को एम्स के हवाले करने का अधिकार होगा।
अदालत का सख्त रुख
सुप्रीम कोर्ट ने अस्पताल प्रबंधन को स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दी कि यदि वह लीज समझौते की शर्तों का पालन नहीं करता, तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि इस मामले की गहन जांच की जाए और अस्पताल के रिकॉर्ड को पूरी पारदर्शिता के साथ प्रस्तुत किया जाए।
अब अपोलो अस्पताल को अपने रिकॉर्ड पेश करने होंगे और यह साबित करना होगा कि उसने गरीब मरीजों को मुफ्त इलाज देने की शर्तों का पालन किया है। यदि जांच में गड़बड़ी पाई जाती है, तो अदालत आगे की कार्रवाई तय करेगी।
इस मामले पर अगली सुनवाई में यह स्पष्ट हो सकता है कि क्या अस्पताल को लीज समझौते के तहत दी गई जमीन पर काम जारी रखने की अनुमति मिलेगी या नहीं।
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