कन्नौज/मुजीब हुसैन। इस्लाम धर्म के अनुयायियों के लिए रमजान के महीने में रोजा रखना फर्ज है। समाजसेवी अली अब्बास नकवी ने बताया कि रोजा न सिर्फ आत्मशुद्धि का जरिया है, बल्कि इससे इंसान की इच्छा शक्ति भी मजबूत होती है। उन्होंने कहा कि रोजा मानसिक शांति प्रदान करता है और इंसान को संयम व आत्मसंयम सिखाता है।
नकवी ने बताया कि रोजा इस्लामी शरीयत के मूल सिद्धांतों में से एक है। रमजान के महीने में रोजा छोड़ना बड़ा गुनाह माना जाता है, लेकिन अगर किसी व्यक्ति को यह यकीन हो कि रोजा रखने से उसकी सेहत पर बुरा असर पड़ेगा या जान जाने का खतरा है, तो उसे रोजा छोड़ने की इजाजत दी गई है। ऐसे में बाद में उसकी कज़ा या कफ्फारा अदा किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि इस पवित्र महीने में मुसलमान विशेष इबादतें करते हैं और हर रात नमाज में वक्त बिताते हैं। इस्लाम भाईचारे और शांति का संदेश देता है और ऐसे किसी भी काम की इजाजत नहीं देता जिससे किसी को नुकसान पहुंचे या सामाजिक सौहार्द बिगड़े।
अली अब्बास नकवी ने अंत में दुआ करते हुए कहा कि "हम अल्लाह से प्रार्थना करते हैं कि हमारे मुल्क में अमन-शांति बनी रहे और सभी इंसान आपसी भाईचारे के साथ रहें।"
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