2019 में सरकार ने अनुच्छेद 370 हटा दिया, जिससे जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म हुआ। उस समय प्रधानमंत्री मोदी ने इसकी आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि यह अनुच्छेद एक औज़ार है, जिससे आतंक, हिंसा और भ्रष्टाचार फैलाए गए।
उसके बाद से लेकर पहलगाम हमले तक, सरकार का दावा रहा है कि दस सालों में जम्मू-कश्मीर में शांति की नई लकीर खींची गई है। मंगलवार का हमला अब तक का सबसे खतरनाक और घातक घटनाओं में से माना जा रहा है।
इस घटना के बाद कई सवाल खड़े हो रहे हैं। इनमें सबसे बड़ा सवाल है, सरकार की कश्मीर नीति का क्या असर रहा? सरकार ने जो दावे किए, उनका सच क्या है? इस घटना के बाद इस नीति का क्या होने वाला है?
बीबीसी हिंदी ने विशेषज्ञों से इन सवालों का जवाब जानने की कोशिश की। 2014 से ही मोदी सरकार का वादा था कि जम्मू-कश्मीर की स्थिति सामान्य होगी। फिर, दूसरी बार सत्ता में आने के बाद सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटा दिया। सरकार का कहा था कि इससे हालात सुधरेंगे।
सरकार ने यह भी कहा कि अब बाकी राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीद सकते हैं और घर बना सकते हैं। तरक्की का एक बड़ा हिस्सा पर्यटन और सुरक्षा था। सरकार ने दावा किया कि अनुच्छेद 370 हटाने के बाद पर्यटकों की संख्या बढ़ गई है। आँकड़े भी इस बात का समर्थन करते हैं।
2024 में कश्मीर में 34 लाख से ज्यादा पर्यटक आए। यह घाटी के लिए नया रिकॉर्ड था। साथ ही बॉर्डर टूरिज्म भी शुरू हुआ। इसके अलावा, सरकार ने कई नई बुनियादी सुविधाएं बनाई हैं। कई सुरंगें बनाई गई हैं, जो दूर-दराज के इलाकों को जोड़ती हैं।
इस साल प्रधानमंत्री ने सोनमर्ग टनल का उद्घाटन किया। यह टनल सोनमर्ग और गगनगिर को जोड़ती है। परियोजना में लगभग 2700 करोड़ रुपये लगे। उच्च शिक्षा के लिए नए कॉलेज और संस्थान भी खोले गए। यहां तक कि सिधरा में गोल्फ कोर्स भी बनाया गया।
सरकार ने दसवीं और बारहवीं के छात्रों को टैबलेट भी दिए। इसके साथ ही, यह दिखाने की कोशिश की कि आतंक और डर का दौर खत्म हो चुका है। हालात सामान्य हो गए हैं। चरमपंथी ताकतें अब कमजोर हो गई हैं।
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