क्या मुसलमान नए संसद की छत पर कुरानख्वानी करें?
सिख गुरुग्रंथ साहिब का पाठ करें?
ईसाई बाइबिल का पाठ करें?
पारसी अपने धर्म की पूजा करें?
जैन अपने धर्म की पूजा करें? बौद्ध अपने धर्म की पूजा करें?
जब सभी समुदायो के लोग भारतीय संसद के सदस्य हैं। तब इसमे एक ही धर्म विशेष की पूजा क्यो?
लखनऊ का लुलु माॅल तो फिर भी निजी है और उसका मालिक भी मुस्लिम है, वह अपने माॅल में अपने धर्म की इबादत के लिए आज़ाद है। लेकिन देश का संसद भवन किसी एक धर्म विशेष के लोगों की प्राॅपर्टी नहीं है, वह जितनी हिंदू की है उतनी ही बाकी समुदाय के लोगों की है। तब वहां एक ही धर्म की पूजा करके अन्य समुदायों को यह संदेश दिया जा रहा है कि यहां उनका कुछ नहीं है। विडंबना तो यह है कि यह सब सेक्युलर संविधान को ताक पर रखकर किया जा रहा है। संविधान के रक्षक बने घूमने वालों को संविधान की आत्मा पर होता यह प्रहार नज़र नहीं आता?
आखिर सवाल तो बनता है।
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