बचपन ज़िन्दगी का वह सुनहरा वक़्त, जिसमे न हमें यह पता के हम क्या है ? हमारा ज़िन्दगी का मकसद क्या है और दोस्ती दुश्मनी बस हमारे लिए एक टैबू ही मात्र है। बस हम एक धुन में जी रहे होते है। हमें एक साथ रहना है हमें खेलना है खुश रहना है। दोस्त बनके रहना है। रो रो कर अपनी हर मांग को पूरा करवाना। जिंदगी के उतार चढ़ाव हमे रुलाते नही थे।
अच्छे बुरे वक़्त में चट्टान जैसा आत्मविश्वास। कभी न टूटना कभी न शिकायत करना और अपने में ही मस्त रहना। शिकवा और शिकायत हम जानते नही।
कितनी ही लड़ाइया क्यों न लड़ ले आपस में, लेकिन एक अदना मुद्दत के बाद फिर एक हो जाना। सारी टेंशनों से आज़ाद सिर्फ बचपन ही होता है। हम शराफत का मुखड़ा सिर्फ बचपन में पहनते है।जवानी में आके हम वह होते है जो हम चाहते है बचपन में तो सब बिना मकसद के जीते है। किसी बात ज्ञान लिए बगैर हम बच्चे कहलाते थे ।अज्ञानी होकर हम ज्यादा भोले भाले थे।किसी भी बदमाशी को करके भी हम शरीफ़ लगते थे ।
क्या दिन थे बचपन के एक साथ एक धागे में बुने मोतियो जैसे।लेकिन समय का परिवर्तन एक यह भी है जब नफरतो लोभ लालच का दौर अपने चरम पे होता है जब बचपन को छोड़ जवानी के तूफान का सामना करते है।
बचपन किया बीता हम बदल गए सारे नग्मे अब बेमानी लगते है।जवानी में ज़िन्दगी की जुस्तजू में इस तरह लगते है कि यह पाने वह पाने की जद्दोजहद की आंधी सारा बचपन उड़ा ले जाती है साथ में सारा सुकून भी कही लिए जाती है।
खेल प्यार अपनी चाहते सिमट जाती है।खिलौने अब सिर्फ शोभा बन के रह जाते है।बचपन खोया किया जीवन ही खो दिया हमने।
जीवन एक विचार है। कभी बचपन की सूरत में कभी जवानी कभी बुढ़ापा संघर्सो का समावेश ही जीवन है ।
लेखक : जिया वारिस (Zia Waris)
नोट: लेखक के विचार निजी है।
अगर आप भी लेखक है तो आप अपने लेख हमे knlive24.in@gmail.com पर अन्यथा व्हाट्सएप 94155 57165 पर भेज सकते है।
Thanks for Connecting with KN Live 24