हालांकि मोदी सरकार ने काफी आलोचनाओं के बाद पार्टी से निकाल दिया है। वहीं खाड़ी देशों की आलोचनाओं को देखते हुए अब शीर्ष नेतृत्व धार्मिक विवादों से बचते नजर आ रहे है।
क्या कोई धर्म किसी अन्य दूसरे धर्म को बुरा कहने की इजाजत देता है ??
सभी का जवाब होगा नही। तो ये कौन लोग हैं जो कभी हिंदू मुस्लिम, कभी मस्जिद मन्दिर और अन्य मुद्दों को बल देते हैं। कोई भी धर्म किसी अन्य धर्म को भी समानता का पाठ पढ़ाता है। कभी ताज महल, कभी कुतुब मीनार, कभी ज्ञानवापी, कभी बनारस। ऐसे मुद्दे आखिर उठते क्यों है?
कभी महंगाई पर क्यूं नही बोला जाता है, बेरोजगारों पर क्यों नहीं बोला जाता है। शिक्षा , स्वास्थ्य और अन्य मुद्दों पर क्यों नहीं बोला जाता है। क्या भाजपा शीर्ष और उनके पदाधिकारी और अन्य कार्यकर्ता सिर्फ मंदिर मस्जिद पर ही सरकार बनायेंगे? क्या शिक्षा,चिकित्सा, बेरोजगारी, महंगाई कोई मुद्दे नही है??
आजकल मीडिया जगत में भी सिर्फ मंदिर मस्जिद पर ही डिवेट करेंगे?? क्या मीडिया को बढ़ती मंहगाई, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य इन मुद्दों पर बहस करना अपनी तौहीन समझते है। क्या इन सब पर बहस करके अपने आकाओं को नही खुश कर पायेंगे या फिर दुकानें नही चल पाएगी?
याद रखिए अगर ऐसा ही चलता रहा तो आने वाला वक्त और भी भयानक होने वाला है।
@UvaisKhan
ये लेखक के निजी विचार है।
इस पूरे मुद्दे पर आपकी क्या राय है कॉमेंट कर जरूर बताएं।
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