बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर – विचारों का प्रकाशपुंज

मो. उवैस खान
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हर वर्ष 14 अप्रैल को भारत एक महान विचारक, समाज सुधारक और संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती मनाता है। लेकिन सवाल यह है – क्या हम केवल उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित कर अपने कर्तव्यों से मुक्त हो सकते हैं, या फिर उनके विचारों को अपने जीवन और शासन व्यवस्था में आत्मसात करने का प्रयास भी करना चाहिए?

बाबा साहेब का जीवन केवल एक व्यक्ति की संघर्षगाथा नहीं, बल्कि वह पूरे भारत के लिए दिशा दर्शक है। उन्होंने जातिवाद की जड़ों को हिला दिया, सामाजिक असमानता को चुनौती दी, और भारतीय लोकतंत्र को ऐसा संविधान दिया जो हर नागरिक को समानता, स्वतंत्रता और न्याय का अधिकार देता है।

वे मानते थे कि "शिक्षा वह शस्त्र है जिससे समाज को बदला जा सकता है।" आज, जब शिक्षा की पहुंच में असमानता, जातिगत भेदभाव और सामाजिक विषमता अब भी विभिन्न रूपों में मौजूद है, तब बाबा साहेब के विचार और भी प्रासंगिक हो जाते हैं।

आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक समरसता की उनकी कल्पना आज के भारत के लिए आदर्श है। उन्होंने श्रमिकों, महिलाओं, दलितों और वंचितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ी, और हर वर्ग को आत्मसम्मान के साथ जीने का अधिकार दिलाने की दिशा में कदम उठाए।

आज जब हम ‘नया भारत’ और ‘समावेशी विकास’ की बात करते हैं, तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह सोच बाबा साहेब के सपनों में पहले से ही थी। लेकिन उनका सपना केवल कानून की किताबों में नहीं, समाज के व्यवहार में उतरना चाहिए।

समापन में, बाबा साहेब को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम जातिवाद, भेदभाव और सामाजिक अन्याय के खिलाफ उनकी विचारधारा को अपने व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन में स्थान दें। उनके आदर्शों पर चलकर ही हम एक ऐसे भारत का निर्माण कर सकते हैं जो न्यायसंगत, समतामूलक और मानवतावादी हो।

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