दिल्ली में दंगों से प्रभावित सीटों पर चुनावी माहौल कैसा है, यह जानना जरूरी है। फरवरी 2020 में इस क्षेत्र में सांप्रदायिक दंगे हुए थे, जिसके बाद जले हुए दुकानों और सड़कों पर पड़े ईंट-पत्थर ने माहौल को भयानक बना दिया था। अब मुस्तफ़ाबाद की गलियों में चुनावी गतिविधियां जोर पकड़ रही हैं। जगह-जगह लगे पोस्टर और उम्मीदवारों की भीड़ में वोट की अपील सुनाई दे रही है।
भागीरथी विहार में आग़ाज़ हुसैन का परिवार रहता है। उनके बेटे अशफ़ाक़ 2020 में दंगों में मारे गए थे। वे बताते हैं कि घर में खुशियों के बीच गम ने अजीब स्थिति पैदा कर दी। उनका एक बेटा डिप्रेशन में है। दंगों में कुल 53 लोग मारे गए, जिनमें 40 मुसलमान और 13 हिंदू थे। सैकड़ों लोग घायल हुए और कुछ आरोपियों को अभी भी जेल में रखा गया है।
विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। News Agency ने दंगा प्रभावित क्षेत्रों के मतदाताओं की राय जानने की कोशिश की है। सवाल यह है कि क्या दंगे पांच साल बाद भी चुनाव का मुद्दा बने हुए हैं?
गोकलपुरी में नितिन पासवान का परिवार रहता है, जिनका 15 वर्षीय बेटा दंगों में मारा गया था। उनका पिता राम सुगारत पासवान आज भी उस दिन को नहीं भूल पाते जब उनका बेटा उनकी गोद में दम तोड़ गया।
कुछ लोग ऐसे भी हैं जो दंगों से बच गए। निसार अहमद उन में से एक हैं। उन्हें भीड़ ने बुरी तरह पीटा था, जिसके बाद उन्होंने अपना घर बेचा और मुस्लिम बहुल इलाके में चले गए। निसार बताते हैं कि वे अब भी अपने घर में सुरक्षित महसूस नहीं करते। उन्होंने अपना मामला कोर्ट में भी पेश किया।
क्या दिल्ली के दंगे चुनाव का मुद्दा हैं?
निसार का कहना है कि जिन लोगों को नुकसान हुआ है, उनके लिए यह मुद्दा तो है। उत्तर-पूर्व दिल्ली में विधानसभा की 10 सीटें हैं, जिनमें से छह दंगा प्रभावित हैं। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने करावल नगर से कपिल मिश्रा को टिकट दिया है।
कपिल मिश्रा ने 23 फरवरी को एक भाषण दिया था और लोगों से सड़कों को खाली करने की मांग की थी। कुछ लोग उन्हें दंगों का जिम्मेदार मानते हैं, लेकिन वे इस आरोप को खारिज करते हैं। उनके अनुसार, वे दंगे रोकने के लिए गए थे।
Thanks for Connecting with KN Live 24